कंकड़बाबा का शाप झेल रहे बांकेलाल और विक्रमसिंह कई योनियों से होते हुए इस बार आ पहुंचे गिरगिट लोक। जहाँ पहुँचने से पहले ही एक गिरगिट खा गया तोता बने विक्रमसिंह को। इधर बांकेलाल जा पहुंचा गिरगिट बस्ती जहाँ चलता था गुर्राज दादा की दादागिरी, गिरगिट लोक पर ही छाया हुआ था आतंक आदमखोर अँगुलियों का जो किसी भी गिरगिट को चट कर जाते। गिरगिट लोक के राजा के पास थे एक अद्भुत अमरबूटी जिसको प्राप्त करने के चक्कर में था गुर्राज दादा परन्तु बांकेलाल भी लगाने लगा तिकड़म उस अमरबूटी को प्राप्त करने की जिसे प्राप्त किया जा सकता था केवल अमावस्या की रात। इधर अमावस्या की ही रात आदमखोर अंगुलियाँ भी बना रहे थे गिरगिट लोक पर हमले की योजना। और फिर...........?
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