भरी दोपहर में एक 14 साल का लड़का भीड़ भरी सड़क पर खींच कर ला रहा था एक ताबूत जिसमे क्या था यह जानने के लिए हो गए सभी उत्सुक। परन्तु वो ताबूत खोलने न दिया उस लड़के ने बल्कि मांग में पागलखाने में बंद एक महिला को उसके सामने लाने की। जब उस महिला मालती को उसके सामने लाया गया तो उसने सबके सामने पढनी शुरू की एक डायरी जिसमे छिपा था राज़ इंस्पेक्टर देवनाथ का वो देवनाथ जो एक अपराधी के हाथों नहीं बचा सका था रिपोर्टर मोहन आप्टे की जान। बचा सका था तो बस मोहन आप्टे की मासूम बेटी कनिका को जिसको उसे अब दिलाना था इन्साफ। और फिर...................?
No comments:
Post a Comment